बारिश की फुहार से मिटटी से उठने वाली सौंधी-सौंधी महक से मन प्रफुलित हो उठा। जब फुहार थोड़ा गहराकर भारी हो गई तो मन किसी पगले मयूर की तरफ नाचने को व्याकुल हो गया। हो भी क्यों न! तपती गर्मी में जब तन के साथ मन भी झुलस रहा हो ऐसे में बारिश की बूंदे न केवल धरती की प्यास बुझाकर, प्रकृति को नवयौवन प्रदान करती है अपितु सूर्य प्रदत वेदना से अंर्तमन को भी पुल्लकित कर देती है। कृत्रिम होते जड़वत जीवन में शायद यही संजीवनी है, जो सुप्त होती इच्छाओं में पुन:संचार कर देती है। यह अहसास सूखी धरती पर मेघ बरसते देख, किसान के अधरों पर उत्पन्न होने वाली मुस्कान से सहज ही हो सकता है जो बारिश की बूंदों को केवल पानी न समझ उनमें अपने सपनों को पूरा की आस को देखता है। वस्तृत: इन पानी की बूदों में संपूर्ण प्राणी जगत ही किसी न किसी प्रकार अपने जीवन का संबल प्राप्त करता है।कभी-कभी लगता है बारिश की इन बूदों में ही जीवन का संपूर्ण सार छुपा है, जो जीवन के अंत और प्रारंभ को भी व्याख्यायित कर देता है। वर्षाकाल, प्रिय-प्रियतमा की प्रणय बेला कों संचारित कर सकती है तो अपने अतिरेक में जीवन को ध्वंस भी। महान कवि कालिदास जी ने मेधदूतम ऐसे ही यक्ष का वर्णन किया जो प्रणय के इस काल के व्यर्थ जाने पर विरह की ज्वाला में दग्ध हो रहा है तो अतिरेक की स्थिति कालजयी रचना कामायनी का आधार बन गई-एक पुरुष, भीगे नयनों से देख रहा था प्रलय प्रवाह । नीचे जल था Åपर हिम था, एक तरल था एक सघन, एक तत्व की ही प्रधानता कहो उसे जड़ या चेतन । साभार: जयशंकर प्रसाद
वैज्ञानिक भी मानते हैं कि पृथ्वी पर सबसे पहले जीवन का अस्तित्व पानी में उभरा और धार्मिक गzंथ इसका अंत पानी में मानते हैं। शायद यही जीवन की सबसे जटिल या सबसे सहज परिभाषा है। वर्षा जब तक अपने सहज रूप में रहे तो यह जीवनदायिनी रहती है और जब यह विकराल रूप धारण कर ले तो विनाश की नवीन लीला रच देती है। तभी यह किसी यक्ष के लिए कुछ होती है तो किसी मनु के लिए कुछ। आइये मिलकर स्वागत करें इस ऋतु का जो सृष्टि को ताजगी से भरकर एक नवीनता उत्पन्न करे, साथ ही यह प्रार्थना भी करें की यह अपने अतिरेक में कोई अनर्थ न करे।
द्वीपांतर परिवार