tag:blogger.com,1999:blog-18967139699040610062024-03-05T05:08:04.348-08:00द्वीपांतर हिंदी मासिकdweepanterhttp://www.blogger.com/profile/01249447833219944837noreply@blogger.comBlogger13125tag:blogger.com,1999:blog-1896713969904061006.post-38574819895292753232010-07-10T06:01:00.000-07:002010-07-10T06:06:23.131-07:00बारिश की फुहार<p>बारिश की फुहार से मिटटी से उठने वाली सौंधी-सौंधी महक से मन प्रफुलित हो उठा। जब फुहार थोड़ा गहराकर भारी हो गई तो मन किसी पगले मयूर की तरफ नाचने को व्याकुल हो गया। हो भी क्यों न! तपती गर्मी में जब तन के साथ मन भी झुलस रहा हो ऐसे में बारिश की बूंदे न केवल धरती की प्यास बुझाकर, प्रकृति को नवयौवन प्रदान करती है अपितु सूर्य प्रदत वेदना से अंर्तमन को भी पुल्लकित कर देती है। कृत्रिम होते जड़वत जीवन में शायद यही संजीवनी है, जो सुप्त होती इच्छाओं में पुन:संचार कर देती है। यह अहसास सूखी धरती पर मेघ बरसते देख, किसान के अधरों पर उत्पन्न होने वाली मुस्कान से सहज ही हो सकता है जो बारिश की बूंदों को केवल पानी न समझ उनमें अपने सपनों को पूरा की आस को देखता है। वस्तृत: इन पानी की बूदों में संपूर्ण प्राणी जगत ही किसी न किसी प्रकार अपने जीवन का संबल प्राप्त करता है।कभी-कभी लगता है बारिश की इन बूदों में ही जीवन का संपूर्ण सार छुपा है, जो जीवन के अंत और प्रारंभ को भी व्याख्यायित कर देता है। वर्षाकाल, प्रिय-प्रियतमा की प्रणय बेला कों संचारित कर सकती है तो अपने अतिरेक में जीवन को ध्वंस भी। महान कवि कालिदास जी ने मेधदूतम ऐसे ही यक्ष का वर्णन किया जो प्रणय के इस काल के व्यर्थ जाने पर विरह की ज्वाला में दग्ध हो रहा है तो अतिरेक की स्थिति कालजयी रचना कामायनी का आधार बन गई-एक पुरुष, भीगे नयनों से देख रहा था प्रलय प्रवाह । नीचे जल था Åपर हिम था, एक तरल था एक सघन, एक तत्व की ही प्रधानता कहो उसे जड़ या चेतन । साभार: जयशंकर प्रसाद<br />वैज्ञानिक भी मानते हैं कि पृथ्वी पर सबसे पहले जीवन का अस्तित्व पानी में उभरा और धार्मिक गzंथ इसका अंत पानी में मानते हैं। शायद यही जीवन की सबसे जटिल या सबसे सहज परिभाषा है। वर्षा जब तक अपने सहज रूप में रहे तो यह जीवनदायिनी रहती है और जब यह विकराल रूप धारण कर ले तो विनाश की नवीन लीला रच देती है। तभी यह किसी यक्ष के लिए कुछ होती है तो किसी मनु के लिए कुछ। आइये मिलकर स्वागत करें इस ऋतु का जो सृष्टि को ताजगी से भरकर एक नवीनता उत्पन्न करे, साथ ही यह प्रार्थना भी करें की यह अपने अतिरेक में कोई अनर्थ न करे।</p><p> </p><p>द्वीपांतर परिवार </p>dweepanterhttp://www.blogger.com/profile/01249447833219944837noreply@blogger.com7tag:blogger.com,1999:blog-1896713969904061006.post-41581262590469923912010-01-21T05:10:00.000-08:002010-01-21T05:13:26.886-08:00गणतंत्र का मूल<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiuXBe4wBiHMEmmKEYBJWlo9e2OrdMjiPPG35TKTNMd2urLAZrbA6zgaxZGCftrJwknCkTqWFaGtSec82OnMn94fgaDjlxzBWcJlYOaPnyUcOPTMNPGAdb8q1l6hHrucQs8ziPEtTdfC5vI/s1600-h/r.jpg"><img id="BLOGGER_PHOTO_ID_5429180441332614786" style="DISPLAY: block; MARGIN: 0px auto 10px; WIDTH: 320px; CURSOR: hand; HEIGHT: 230px; TEXT-ALIGN: center" alt="" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiuXBe4wBiHMEmmKEYBJWlo9e2OrdMjiPPG35TKTNMd2urLAZrbA6zgaxZGCftrJwknCkTqWFaGtSec82OnMn94fgaDjlxzBWcJlYOaPnyUcOPTMNPGAdb8q1l6hHrucQs8ziPEtTdfC5vI/s320/r.jpg" border="0" /></a><br /><div>हम गणतंत्र दिवस मनाने की तैयारियां कर रहे हैं। राजधानी का राजपथ विकसित होते देश की झलक विश्व को दिखाने के लिए व्याकुल हो रहा है। क्षण-प्रतिक्षण बीतता समय सुखद भविष्य की कामना के साथ अतीत की स्मृतियों को भी इस अवसर पर बारंबार कुरेद रहा है। इस घड़ी में आत्मावलोकन के साथ सिहांवलोकन भी आवश्यक हो जाता है। क्योंकि बिना भूतकाल को याद किए इस बात का निर्णय करना कठिन है कि हम कहां है और बिना इस जानकारी के भविष्य के लिए सपनों की इबारत लिखना व्यर्थ है। पीछे देखें तो इस बात का गौरव संतोष पैदा करता है कि हम गुलामी की बेड़ियों को उतार स्वराज्य प्राप्त कर नव-निर्माण का इतिहास प्रतिदिन रच रहे हैं। यह मधुर अहसास, हमारे विचारों और कृत्यों को मजबूती प्रदान करता है। हम विश्व के अगzणी देशों की फेहरिस्त में सम्मिलित हो रहे हैं। अंतर्राष्ट्रीय पटल पर हमारी विशिष्ट पहचान बन चुकी है, जिसे परिष्कृत करने का कार्य निरंतर चल रहा है। इस अतीत और वर्तमान की बुनियाद पर हम स्वर्णिम भविष्य की संकल्पना कर सकते हैं। परंतु इन आंकड़ीय तथ्यों के मध्य जब हम आत्मावलोकन करते हैं तो हमें वो चेहरे भी दिखते हैं जो दो वक्त की रोटी के लिए भी मोहताज हैं, जिन्होंने कभी स्कूल नहीं देखा, जो इलाज के अभाव में सिसक-सिसक कर जी रहे हैं। निश्चय ही देश ने अप्रतिम प्रगति की है, परंतु उस प्रगति का लाभ उस आम आदमी तक नहीं पहुंचा जो गांवों में रहता है। शहरी चकाचौंध को छोड़ दिया जाए तो आज भी देश के कई भागों से आम जनता के भोजन के रूप निकृष्टम पदार्थों का सेवन करने की बाते सुर्खियां बनकर हमारे सामने आती हैं। महंगाई इस वर्ष अपने चरम पर हैं। आम आदमी के लिए दो वक्त की रोटी भी जी का जंजाल बनी हुई है। योजना आयोग के उपाध्यक्ष भी मानते हैं कि देश की 28 प्रतिशत आबादी अब भी गरीबी में जी रही है। 46 प्रतिशत बच्चे कुपोषण का शिकार हैं। 50 प्रतिशत छात्रा सेंकेडरी शिक्षा से पहले ही स्कूल त्याग देते हैं। 60 प्रतिशत महिलाएं एनीमिया से गzस्त हैं और जब देश में प्राय: सरकारी आंकड़ों को संशय की दृष्टि से ही देखा जाता हो तो ऐसे में स्थिति को स्वयं ही समझा जा सकता है। नि:संदेह यह स्थिति अत्यंत ही चिंताजनक है। भले ही यह कह लिया जाए कि विकास की अपनी गति होती है, रातोरात चमत्कार नहीं हो सकता। परंतु स्वतंत्रता प्राप्ति के 6 दशकों का समय कम भी नहीं होता। इतनी अवधि में एक पूरी पीढ़ी बूढ़ी हो सेवानिवृत हो जाती है। यहां इन बातों को उजागर करने का आशय किसी पूर्वागzह या दुरागzह से प्रेरित होना नहीं है, बल्कि इस कमी को दूर करने की प्राथमिकता पर जोर देना है। महत्वपूर्ण यह है कि जब भी योजनाएं बनाई जाएं तो उसके केंदz में सबसे पहले उस आम देशवासी को रखा जाए तो अभावगzस्त है। साथ ही इन योजनाओं के दिशा-निर्देश इस प्रकार तय किए जाएं ताकि इनके जिन आंकलनों को आधार बनाया गया है वह कहीं पीछे न छूट जाए। गणतंत्र में गण की महत्ता को बढ़ावा मिले न कि तथ्यों के उद~घाटन को। वास्तव में गणतंत्र दिवस का शुभ अवसर पर हम सबको राष्ट्र निर्माण के उन सपनों को याद कराता है जो आजादी प्राप्त करने से पूर्व देखें गए थे। अत: इस अवसर की महिमा को स्मरण रख, संकल्पित होकर सबके लिए खुशहाल भारत का निर्माण करने के हम सब एक जुट हो, यही वास्तविक गणतंत्र का मूल है। </div>dweepanterhttp://www.blogger.com/profile/01249447833219944837noreply@blogger.com7tag:blogger.com,1999:blog-1896713969904061006.post-31584139616228487912010-01-09T00:23:00.000-08:002010-01-09T00:36:14.858-08:00पंचकर्म से संभव है सोरायसिस का उपचार<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh6CdMRGKZx5uMZpqRLRFn6ZENR0ftAnV8eG3FKRDay3pGCALJ6A6lxAkwR_nxY5f51-27o0f-RCR8lTert1LRng8ByYGZwqDxmFaTtMBnRRgExwD97S8wPJeA-1m4BOnx9K9k5T-x9fZVv/s1600-h/2p.jpg"><img id="BLOGGER_PHOTO_ID_5424655481805780322" style="WIDTH: 151px; CURSOR: hand; HEIGHT: 219px" alt="" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh6CdMRGKZx5uMZpqRLRFn6ZENR0ftAnV8eG3FKRDay3pGCALJ6A6lxAkwR_nxY5f51-27o0f-RCR8lTert1LRng8ByYGZwqDxmFaTtMBnRRgExwD97S8wPJeA-1m4BOnx9K9k5T-x9fZVv/s320/2p.jpg" border="0" /></a><br /><div> <img id="BLOGGER_PHOTO_ID_5424655264004320418" style="DISPLAY: block; MARGIN: 0px auto 10px; WIDTH: 228px; CURSOR: hand; HEIGHT: 190px; TEXT-ALIGN: center" alt="" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjjEsDCHvr8bFsANPtJUqzmin3d1oola3-6BkQc72QetcpatHQsFgHkIOI-ytLO_E01Y7Q-P_OT9BUArXo_u_VmT6WWAnIvxveUPQJEPXy8ucGGd9F12KXKteJ805u1DrxC36DnEpaibrfn/s320/1p.jpg" border="0" /><br /><br /><div></div><br /><br /><p><br /><strong><span style="color:#ff0000;">प्राय सोरायसिस के रोगी अपने इस रोग को आम दाद-खाज खुजली के रोग से जोड़कर लंबे समय तक इसका उपचार कराने से कतराते रहते हैं। जिसका परिणाम यह होता है कि जब यह रोग काफी पुराना तथा जटिल हो जाता है तब रोगी इसके इलाज के लिए चिंतित होता है। रोग के संदर्भ में विशेष बात यह ध्यान देने योग्य है कि रोग जितना पुराना हो जाता है उसके उपचार में उतना ही समय लगता है। </span><span style="color:#3333ff;">-डा. देवाशीष पांडा</span></strong><br /><br /><strong>यह लेख <span style="color:#ff0000;">डा. देवाशीष पांडा</span> से की गई बातचीत पर आधारित है। द्वीपांतर परिवार उनका आभारी है कि उन्होंने अपनी व्यस्त दिनचर्या में से समय निकालकर हमें इस लेख के लिए सहयोग दिया</strong><br /><br />मिथ्या आहार-विहार के कारण वर्तमान समय में त्वचा संबंधी विकार बढ़ रहे हैं। डा. देवाशीष पांडा के अनुसार सामान्यत त्वचा से संबंधित यह विकार उचित खान-पान तथा औषधियों से ठीक हो जाते हैं, लेकिन कुछ त्वचा रोग ऐसे भी होते हैं जिनकी चिकित्सा जटिल होती है। त्वचा से संबंधित एक ऐसा ही रोग है सोरायसिस। एक अनुमान के मुताबिक सोरायसिस के रोगी संपूर्ण विश्व में ही मिलते हैं। सकल विश्व की कुल जनसंख्या का अनुमानत 1 प्रतिशत हिस्सा सोरायसिस रोग से पीड़ित हैं। इस आधार पर माना जा सकता है कि हमारे देश में भी जनसंख्या का लगभग 1 प्रतिशत भाग इस रोग से जूझ है।<br /><br /><span style="color:#ff0000;"><strong>क्या है सोरायसिस</strong></span><br />मनुष्य की सामान्य त्वचा पर सोरायसिस रोग पपड़ीदार, रक्तिम;रक्तवर्णितद्ध वह विकार है जो चकतों के रूप में अलग से उभरे होते हैं। यह कुछ-कुछ मछली की उपरी खाल की तरह होते हैं। यह चकते प्राय हाथ-पैर, घुटनों, कोहनी, सिर के बालों के नीचे और पीठ के निचले हिस्सों पर देखने को मिलते हैं। इन चकतों का आकार मुख्यत 2-4 मिमि से लेकर कुछ सेमी तक हो सकता है, जिनमें खुजली की शिकायत भी रोगी को होती है। डाक्टर देवाशीष पांडा के अनुसार आयुर्वेद में इस रोग को एककुष्ठ कहा जाता है। यह रोग सामान्यतया शरीर में हो जाने वाली दाद-खाज से भिन्न प्रकृति का है। जहां दाद-खाज का घरेलू उपचार संभव है वहीं सोरायसिस के रोगी को चिकित्सकीय उपचार की परम आवश्यकता होती है। उपयुक्त उपचार के अभाव में रोगी के प्राणों पर भी संकट उत्पन्न हो सकता है।<br /><br /><strong><span style="color:#ff0000;">रोग होने के कारण</span></strong></p><br /><br /><p><strong><span style="color:#ff0000;"><span class=""></span></span></strong><br />रोग होने के कारणसोरायसिस रोग कभी भी किसी को भी हो सकता है। हालांकि, अभी तक इस रोग के संदर्भ में हुए अनुसंधन से यह स्पष्ट रूप से विदित नहीं हो सका है कि सोरायसिस रोग के उत्पन्न होने का प्रमुख कारण क्या हैं, परंतु प्रत्येक 10 रोगियों में से एक को यह वंशानुगत रूप से मिला होता है। इसलिए इसे जेनेटिक या विरासत में मिला हुआ रोग भी माना जा सकता है। कुछ लोग इसे भूलवश छूत की बिमारी मानते हैं, लेकिन यह रोग छूने से नहीं फैलता है।<br /><br /><strong><span style="color:#ff0000;">सोरायसिस के प्रमुख लक्षण</span></strong></p><br /><br /><p>सोरायसिस रोग से पीढ़ित व्यक्ति की त्वचा सूजी हुई, पपड़ीदार, रुखी-सूखी चकतों में विभक्त दिखाई देती है। यह चकते रक्तिमवर्ण लिए होते हैं जिनमें खुजली होती रहती है। यह रोग बड़ी तेजी के साथ शरीर पर फैलता है। सोरायसिस रोग किसी को, कभी हो सकता है परंतु युवास्था में इस रोग के होने की संभावना अधिक होती है । डाक्टर देवाशीष पांडा के अनुसार सोरायसिस रोग की प्रकृति रितुओं से भी प्रभावित होती है। गर्मियों की अपेक्षा सर्दियों में सोरायसिस बढ़ जाता है<br /><br /><strong><span style="color:#ff0000;">सोरायसिस की चिकित्सा</span></strong></p><br /><br /><p>सोरायसिस का उपचार यदि न कराया जाए तो यह रोग आसाध्य तक हो जाता है। डाक्टर देवाशीष पांडा का कहना है कि कि आर्युवेद में पंचकर्मा पद्वति से सोरायसिस का सफल इलाज संभव है। जिसके अंतर्गत औषिधि युक्त घृत-घी से वमन तथा तकधारा करायी जाती है। इस पद्वति के तहत उपचार के लिए मरीज को 8-10 दिन के लिए अस्पताल में भर्ती होना पड़ता है तत्पश्चात मरीज घर पर ही इस रोग की दवा लेता रहता है।</p></div>dweepanterhttp://www.blogger.com/profile/01249447833219944837noreply@blogger.com70tag:blogger.com,1999:blog-1896713969904061006.post-3720350541320222712010-01-07T00:03:00.000-08:002010-01-07T00:21:11.752-08:00रियलिटी शो और बच्चे<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgzu6g0kkDf1g-_o58Y6RZ346hGk64ySIvMrn4-CN3tUFjG3jmx2GqrlwP761LcxZXIAizlgJTunWWQ_VY9zTykMaSVXPwINR0k0Ebf5Dhi_cr4EyAmtkBHHAPHBhZjtdt3AhcUjHrwg5x1/s1600-h/ki.jpg"><img id="BLOGGER_PHOTO_ID_5423909474528277010" style="DISPLAY: block; MARGIN: 0px auto 10px; WIDTH: 320px; CURSOR: hand; HEIGHT: 214px; TEXT-ALIGN: center" alt="" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgzu6g0kkDf1g-_o58Y6RZ346hGk64ySIvMrn4-CN3tUFjG3jmx2GqrlwP761LcxZXIAizlgJTunWWQ_VY9zTykMaSVXPwINR0k0Ebf5Dhi_cr4EyAmtkBHHAPHBhZjtdt3AhcUjHrwg5x1/s320/ki.jpg" border="0" /></a><br /><div><em><span style="color:#ff0000;"><strong>द्वीपांतर परिवार</strong></span><br /></em>पिछले कुछ एक वर्षों से छोटे पर्दें पर रियलिटी शो तथा प्रतिस्पर्धात्मक कार्यक्रमों की बाढ़-सी आ रखी है। इन कार्यक्रमों से जिस प्रकार टीवी चैनलों की टीआरपी बढ़ती है, उसे देखते हुए हर एक टीवी चैनल इस प्रकार के ‘डेली सोप’ कार्यक्रमों को अपने एयर टाइम में जगह देने के लिए तैयार खड़ा है। इस तस्वीर का दूसरा पहलू यह भी है कि इन कार्यक्रमों में विजेता को एक भारी भरकम रकम तथा प्रसिद्धि इनाम के रूप में मिलती है, जिसके कारण शो में भाग लेने वाला हर प्रतिभागी खुद को सिकंदर साबित करने में जी-जान से जुट जाता है। और खुद को सिकंदर साबित करने की यह मनोदशा उन्हें कई बार अवसाद के चक्रव्यूह में भी उलझा देती है। उधर कार्यक्रम की टीआरपी बढ़ाने के लिए भी तमाम तरह के हथकंडे चैनलों द्वारा अपनाए जाते हैं। शो के जजों के आपसी मनमुटाव से लेकर प्रतिभागियों की आपसी नोक-झोक को भी ‘सनसेशनल’ सनसनी बनाकर बढ़ा-चढ़ाकर दिखाया जाता है। चूंकि यह सारा मामला टीआरपी से अर्थात् गलाकाट होड़ में अन्य चैनलों से आगे निकलने का होता है इसलिए हर वो तरीका अपनाया जाता है, जिससे दर्शक कार्यक्रम देखने के लिए प्रोत्साहित हांे। इसी बानगी के तहत छोटे-छोटे बच्चों को भी रातोरात स्टार और लखपति बनने के ख्याब दिखाए जाते हैं। बड़ों की तर्ज पर जब यह सुकुमार व्यावसायिकता के पुट से परिपूर्ण कार्यक्रमों में भाग लेते हैं तो वहां उनके साथ व्यवहार भी किसी प्रोफेशनल की तरह ही किया जाता है। हालांकि इसमें केवल टी-वी- चैनल वालों को ही दोष देना गलत होगा, क्योंकि संभवतघ् अभिभावकों का एक बड़ा तबका भी जाने-अनजाने इस ग्लैमर से प्रभावित होकर अपनी इच्छाओं का बोझ बच्चों पर डाल देता है। इस सबके बीच में अबोध आयु के बच्चे पर कार्यक्रम में असफल होने पर क्या बीतती होगी, इसका अंदाजा लगाना भी मुश्किल नहीं है। कुछ समय पूर्व दक्षिण कोलकाता की शिंजिनी सेन को एक रियलिटी शो में जजों के विचारों से इस कदर मानसिक आघात लगा कि वह लकवे का शिकार हो गई।ऐसा होगा संभवत किसी ने सोचा भी न होगा। यहां पर हमारा उदेश्य किसी पर दोषारोपण करने का या किसी की भावनाओं को आहत का कदापि भी नहीं है। शो के जजों को यदि गुरु मान लिया जाए तो उनका कार्य ही प्रतिभागियों ‘शिष्यों’ की योग्यता का आंकलन कर उनकी कमियों को उनके सामने लाना है। ऐसे में बहुत हद तक संभव है कि वह कटुवचन भी बोल दें। उधर प्रत्येक माता-पिता की इच्छा होती है कि उनकी संतान जीवन में सफलता और यश प्राप्त करें, इस लिए वो अपने बच्चों को प्रोत्साहित करते हैं, और निसंदेह करना भी चाहिए। लेकिन इन सब के बीच जो एक अहम् सवाल है कि प्रतियोगी बच्चों की भावनाओं को भी सभी समझना आवश्यक है, उसे दर किनार ही कर दिया जाता है, जिसका परिणाम शिंजिनी के रूप में हमारे सामने आता है। यहां आवश्यक यह है कि बच्चा किसी प्रतियोगिता, केवल टीवी शो ही नहीं बल्कि पढ़ाई इत्यादि के क्षेत्र में भी असफल हो जाता है, तो उसका मनोबल बढ़ाने का प्रयास सभी के द्वारा करना चाहिए। रियालिटी शो में शिल्पा शेट्टी जैसे स्थापित कलाकार भावनात्मक रूप से आहत हो जाते हैं तो एक बच्चे की स्थिति सहज समझी जा सकती है। इसलिए जरूरी है कि टीवी चैनलों के जज एवं बच्चों के माता-पिता भी इस बात का ध्यान रखें कि वो एक बच्चे हैं कोई प्रोफेशल्नस नहीं।</div>dweepanterhttp://www.blogger.com/profile/01249447833219944837noreply@blogger.com14tag:blogger.com,1999:blog-1896713969904061006.post-26238677332390499502010-01-01T00:48:00.000-08:002010-01-01T00:50:43.693-08:00युवाओं में कम होती रिश्तों की अहमियत<strong><span style="color:#000099;">लेखक-रेनू त्यागी कोटियाल</span></strong><br /><span class=""></span><br />भाग दौड़ भरी जिंदगी और पीछे छूटते संस्कार लगभग यही हाल है आज की युवा होती पीढ़ी का। आज के युवा रिश्तों को निभाना तो दूर सीरियस लेना भी जरूरी नहीं समझते। बड़े-बूढ़े, मां-बाप, भाई-बहन, चाचा, मामा ये सब रिश्ते उन्हें अब शब्द मात्र बेमानी से लगने लगे हंै। सिर्फ अपने में ही मस्त रहने वाली आज की ये पीढ़ी अपने बुजुर्गांे से पीछा छुड़ाती नजर आ रही है। एकाकी जीवन को पूर्ण मानने की भावना के कारण जीवन के महत्पूर्ण रिश्ते जो कि उनके जन्म के साथ ही उनसे जुड़े होते हैं वो उनके लिए बोझ बन रहे हैं। उनके अपने मां-बाप, दादा-दादी उनके लिए बोझ बनने लगे हैं। इनके पर आधुनिक सभ्यता इतनी हावी हो चुकी है कि इन्हें ये भी ख्याल नहीं कि जिन रिश्तों की वो बलि देकर आगे बढ़ रहे हैं बुरे वक्त में उन्हें इन्हीं रिश्तों की जरूरत होगी। आखिर क्यों बदल रहा है युवाओं का नजरिया। आइये डालते हैं एक नजर कि कौन सी बात है जिससे बदल गये है रिश्तों के मायनें।<br /><br /><strong><span style="color:#ff0000;">नैतिकता का अभाव-</span></strong> वर्तमान शिक्षा प्रणाली और पहले की शिक्षा प्रणाली में यही फर्क है कि जहां पहले की शिक्षा प्रणाली मंे नैतिकता का असर था वहीं आज की शिक्षा पद्धति में नैतिकता कही दूर-दूर तक भी नजर नहीं आती।परस्पर प्रेम, सदभाव और समर्पण की भावना का विकास करने वाली बातें अब नीतिशास्त्र के वो अध्याय बन गए हैं जिनका पठन पाठन तो युवा करते हैं परंतु उनका अनुसरण करना उनको नहीं आता। आज की शिक्षा पूरी तरह से व्यावसायिक मूल्यों को ध्यान रखकर दी जा रही है जिसका असर सीधा हमारे नैतिक मूल्यों पर पड़ रहा है। इसी से आज युवाओं के दिल में मानवीय संवेदना खत्म होती जा रही है।<br /><br /><strong><span style="color:#ff0000;">पाश्चात्य जगत का प्रभाव-</span></strong> आज का युवा वर्ग ये सोचता है कि अगर वो पाश्चात्य सभ्यता को अपना लेगा तभी वो जीवन में आगे बढ़ सकेगा है। इसी वजह से आज वो अपनी संस्कृति अपने आदर्शांे की बलि दे रहे हैं इसका नतीजा ये हो रहा है की धोबी का कुत्ता न घर का न घाट का यानि न वो पूरी तरह से अपने कल्चर में ढल पर रहे हंै और न ही पश्चिमी सभ्यता में। आज के युवाओं को इस बात का ध्यान रखना चाहिये की वो जिस कल्चर के लिए पागल हुए जा रहे हैं वहां के लोग आज हमारी सभ्यता को अपना रहे है। अगर हम अपने कल्चर का पालन करे तो जाहिरतौर पर तरक्की हमारे कदमों में होगी।<br /><br /><strong><span style="color:#ff0000;">बदलाव का दुश्परिणाम-</span></strong> समय के साथ संयुक्त परिवार की परंपरा खत्म ही होती जा रही है जहां पहले संयुक्त परिवार में रहना जरूरी माना जाता था इसी प्रकार आज के युवाओं में यह मानसिकता पनपती जा रही है कि अगर आप अलग रहोगे तो जिन्दगी अपने ढ़ग से जी सकते हो ये बात ठीक है कि इसमें आप अपना जीवन अपनी स्टाइल में बीता सकते हो लेकिन जब आप पर बुरा समय आयेगा तो आप उस दिन भीड़ में अकेले ही रह जाओगे इसलिए तो किसी ने कहा है एकता में शक्ति है।<br />अपनी धुन में रहना- आज के नौजवान अपनी एक दुनियां बना लेते है और उसी में मस्त रहते है। वो चाहते है उनकी दुनियां में कोई दखल न दे और अगर कोई ऐसा करता है तो उन्हें लगता है कि वो उनकी राह का सबसे बडा रोड़ा है और वो उस रिश्ते से सदा के लिए निजाद पा लेना चाहते है। अब आलम यहां तक आ चुका है कि ये वर्ग अपनी जिम्मेवारियों से भी दूर भागने लगा है चाहे वो पारिवारिक जिम्मेदारियां हो या खुद के मां-बाप की।dweepanterhttp://www.blogger.com/profile/01249447833219944837noreply@blogger.com22tag:blogger.com,1999:blog-1896713969904061006.post-71489913069971459222009-12-30T02:59:00.000-08:002009-12-30T03:15:02.300-08:00दस का दम<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgd6ymj1hmgl-DrcLckGKOfyTZeUYgwsRAyYD4_s7uC96rUE_RDa6VQHFSaluPEgjnpaoqX-MQ33Gm0sNNc9KVecNAO80OUUFtaVh9YKUMf8oyaFRMK16YPSSuHrZ9KqKTMVg4VOqnm10QC/s1600-h/c.jpg"><img id="BLOGGER_PHOTO_ID_5420984522224625618" style="DISPLAY: block; MARGIN: 0px auto 10px; WIDTH: 292px; CURSOR: hand; HEIGHT: 320px; TEXT-ALIGN: center" alt="" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgd6ymj1hmgl-DrcLckGKOfyTZeUYgwsRAyYD4_s7uC96rUE_RDa6VQHFSaluPEgjnpaoqX-MQ33Gm0sNNc9KVecNAO80OUUFtaVh9YKUMf8oyaFRMK16YPSSuHrZ9KqKTMVg4VOqnm10QC/s320/c.jpg" border="0" /></a><br /><div><br /><span style="color:#990000;"><span class=""><br /><blockquote><span style="color:#990000;">कैरियर कांउसिलिंग<br /></span></blockquote></span></span><span style="color:#3366ff;"><strong>लेखक- हैरी</strong><br /></span><strong>बदलते परिवेश में जितना मुश्किल कैरियर निर्माण करना होता जा रहा है, उससे भी कहीं ज्यादा कठिन कैरियर का चुनाव करना हो गया है। आज हमारे देश में ही नहीं अपितु संपूर्ण विश्वभर में शिक्षा समाप्त करने के पश्चात अकसर छात्र इस असमंजस में पड़ जाते है कि किस क्षेत्र में भविष्य संवारा जाए। यही वह समय होता है जब लिया गया कोई भी निर्णय कैरियर को बना तथा बिगाड़ सकता है।<br />आज ऐसा दौर चल पड़ा है कि किसी भी क्षेत्र में कैरियर बनाने के लिए उससे जुड़े पाठयक्रमों का अनेकों संस्थाओं द्वारा संचालन एवं प्रचार-प्रसार किया जा रहा है। मजे की बात तो यह है कि सभी अपने कोर्सों की विशेषताओं को इस तरह से पेश करते हैं कि लगता है कि उस क्षेत्र में ही भविष्य निर्माण कर लिया जाए। लेकिन किसके लिए क्या उचित और क्या अनुचित है, यह तो वही व्यक्ति बखूबी जानता है जिसे अपने कैरियर का निर्माण करना है।<br />यह बात बिल्कुल सही है कि निर्णय लेने में भमz तथा भाववेश जरूर आड़े आते हैं, लेकिन यदि इन दस मूलमंत्रों पर अमल किया जाए तो जाहिर तौर पर सही फैसला लेने में मदद मिल सकती है।</strong><br /><br /><br /><span style="color:#ff0000;"><strong>योग्यता को ध्यान में रखें:-</strong> </span>हमेशा कैरियर चुनने से पहले अपनी योग्यता को ध्यान में रखें। क्योंकि वही व्यक्ति अपना भविष्य उज्जवल बना सकता है जो अपनी रूचि व काबिलियत के अनुरूप कैरियर चुनता है।<br /><strong><span style="color:#ff0000;">चमक-दमक में न पड़े:-</span></strong> अक्सर देखा जाता है कि छात्र कैरियर विकल्प को अपनाते समय उसकी चमक-दमक को देखते हैं। लेकिन यह सोच भविष्य निर्माण के लिहाज से अत्यंत घातक सिद्ध हो सकती है। क्योंकि इस तरह की चमक-दमक मात्र कुछ दिनों तक ही कायम रहती है। अत: कैरियर का चुनाव करते समय इससे परहेज करना बेहतर होता है।<br /><span style="color:#ff0000;"><strong>दो-चार विकल्प रखें:-</strong></span> आज के प्रतियोगिता के दौर में सिपर्फ एक राह पर चलना कतई फायदे का सौदा नहीं है। हर व्यक्ति को चाहिए कि वह कैरियर में दो-चार विकल्प जरूर रखे। हो सकता है कि आप एक तरपफ असपफल हों तो अन्य विकल्पों को अपनाकर कामयाबी भी पा सकते हंै। जो व्यक्ति इस प्रकार की व्यवस्था पर अमल करता है वह सदा मानसिक तनाव झेलने से बच जाता है।<br /><strong><span style="color:#ff0000;">पसंदीदा कैरियर से स्वयं का आंकलन करें:-</span></strong> यह अति आवश्यक है कि आप खुद का आंकलन पसंदीदा कैरियर से कर लें। इसके लिए सबसे पहले अपनी योग्यता तथा कार्य क्षमता की एक रूपरेखा तैयार करें तथा इसके पश्चात~ पसंदीदा कैरियर का खाका तैयार करें और पिफर दोनों को दृष्टि में रखकर ही निर्णय लें।<br /><strong><span style="color:#ff0000;">भाववेश में चुनाव न करें:-</span></strong> कैरियर का चयन हमेशा शांतचित तथा सोच-विचार के उपरांत करना ही फायदेमंद होता हैं। किसी के बहकावे में या दबाव में आकर फैसला लेने से सदा बचें। सुने सबकी लेकिन करे अपने मन की। क्योंकि भविष्य में इसके परिणाम आपको स्वयं भुगतने पड़ेंगे। अक्सर देखने में आता है कि बच्चे मां-बाप की इच्छाओं के चलते भाववेश में आकर अपनी रूचि व योग्यता के विपरीत चयन कर बैठते हैं जोकि बेहद नुकसानदेह साबित हो सकता है।<br /><strong><span style="color:#ff0000;">सभी पहलुओं पर नजर डालें:-</span></strong> यह बात कापफी अहमियत रखती है कि जिस कैरियर का चुनाव आप कर रहे हैं उसके हर पहलू से आप रूबरू हो जाएं। जैसे भविष्य में सफलता की कितनी संभावनाएं मौजूद हैं। सुरक्षा की दृष्टि से यह कितना सुरक्षित है तथा वेतन व तरक्की को घ्यान में यह कितना कारगर हो सकता है इत्यादि।<br /><strong><span style="color:#ff0000;">जानकारों की सलाह लें:-</span></strong> किसी भी क्षेत्र में कैरियर बनाने के लिए अति आवश्यक है कि आप समय-समय पर उन कार्यों से जुड़े व्यक्तियों से सलाह जरूर लें। इससे सबसे बड़ा लाभ यह होता है कि आप इस बात से अवगत हो जाते हैं कि उक्त क्षेत्र में भविष्य में क्या-क्या संभावनाएं मौजूद है तथा इस क्षेत्र में कदम रखने के बाद आप कितने सफल हो सकेंगे।<br /><strong><span style="color:#ff0000;">तमाम परिस्थितियों को ध्यान में रखें:-</span></strong> किसी भी व्यक्ति के लिए कैरियर संबंधी निर्णय मंे यह बेहद आवश्यक होता है कि वह सबसे पहले अपनी आर्थिक स्थिति को देखे। उसके बाद व्यक्तिगत तथा इसके पश्चात~ सामाजिक। अगर इन तीनों बातों को ध्यान में रखकर चयन किया जाए तो जाहिर तौर पर सफल कैरियर बनाया जा सकता है।<br /><span style="color:#ff0000;"><strong>श्रम एवं पूंजी बाजार को भी नजर में रखें:-</strong></span> यह बात काफी मायने रखती है कि किस क्षेत्र में कितने परिश्रम के पश्चात कितनी आय अर्जित की जा सकती है। किसी भी क्षेत्र में प्रवेश करने से पहले इस बात पर जरूर ध्यान दें कि वर्तमान ही नहीं, अपितु भविष्य में भी उसमें श्रम के अनुरूप पूंजी मिल सकती है अथवा नहीं। इसके पश्चात~ ही यह फैसला करें कि आपका इस क्षेत्र में प्रवेश करना उचित है या अनुचित।<br /><strong><span style="color:#ff0000;">आत्मसंतुष्टि का भी ध्यान रखें:-</span></strong> इंसान की प्रवृति होती है कि वह किसी भी कार्य को तब तक रूचिपूर्वक नहीं करता है, जब तक की उसमें उसे आत्मसंतुष्टि का आभास न हो। अगर कोई ऐसा कैरियर चुन लिया जाए जिसमें आत्मसंतुष्टि ही नहीं मिले तो जाहिर है कि उसमें सफलता पाना भी कठिन होगा। सफलता तभी मिल सकती है जब कार्य आत्मसंतुष्टि प्रदान करने वाला हो।</div>dweepanterhttp://www.blogger.com/profile/01249447833219944837noreply@blogger.com6tag:blogger.com,1999:blog-1896713969904061006.post-78902653622602712972009-12-25T00:15:00.000-08:002009-12-25T00:18:15.641-08:00मैरी क्रिसमस<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjvKj5Vj83i4mPVzSciF0Z_FOutkV-QMPE8rLnzRsrrr3-M8MD3d0dpqqtPBfJiOYjg97UGDS5762OtYuNExpBXWGW4NcCGVLCzXuk2EjEX80EWojSehja8xFq9Xvf4HJ3cLTA7J1sgy1f5/s1600-h/santa-claus.jpg"><img style="display:block; margin:0px auto 10px; text-align:center;cursor:pointer; cursor:hand;width: 320px; height: 232px;" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjvKj5Vj83i4mPVzSciF0Z_FOutkV-QMPE8rLnzRsrrr3-M8MD3d0dpqqtPBfJiOYjg97UGDS5762OtYuNExpBXWGW4NcCGVLCzXuk2EjEX80EWojSehja8xFq9Xvf4HJ3cLTA7J1sgy1f5/s320/santa-claus.jpg" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5419084975683852850" /></a><br />नववर्ष के आगमन में अब गिने-चुने दिन ही शेष हैं। मौसम की बदलती फिजा जैसे खुद को नए साल के लिए तैयार कर रही हो। सुबह कोहरे की चादर लेकर आती है, तो मन करता है घर में ही दुबके पड़े रहने का। दिन की चमकीली घूप तन-मन को ऐसी राहत देती है कि मन बरबस ही खुशी से झूम उठता है। अदरक वाली चाय तन को स्फूर्ति से भर देती है, तो मूंगफली-रेबड़ी हर एक की हमजोली बन जाती है। इन सब के बीच आज क्रिसमस है। क्रिसमस यानि बड़ा दिन। अनंत आशाओं का दिन। अंनत खूशियों का दिन। इस दिन सांता अपनी बड़ी सी स्लेज गाड़ी पर आते हैं, बच्चों, बड़ों सबके लिए उपहार लिए। चुपचाप सबकी इच्छाओं को पूरा करने। इसबार मन में क्रिसमस को लेकर एक इच्छा है। इच्छा है कि सांताक्लाWज अबकी बार अपने साथ पृथ्वी पर अमन-चैन लेकर आएं। सर्वत्र विश्व-बधुत्व की भावना का प्रसार हो। हर दिल में खुशियों की बौछार हो। ऐसा हो इस बार का क्रिसमस। सभी को मैरी क्रिसमस।dweepanterhttp://www.blogger.com/profile/01249447833219944837noreply@blogger.com10tag:blogger.com,1999:blog-1896713969904061006.post-77502489956449848772009-12-19T02:18:00.000-08:002009-12-19T02:23:19.852-08:00अपना होने का दुख<blockquote><strong>व्यंग्य</strong></blockquote><br /><br />वसुधैव कुटुम्बकम~ की संकल्पना का प्रचार अवश्य ही उन लोगों ने किया होगा जो अपनों के अपनत्व से पीढ़ित रहें होंगे। संभवत: अपने दु:ख को सर्वव्यापी बनाकर, उसे घटाने के उदेश्य से ही उन्होंने यह मायाजाल रचा। अन्यथा जो मजा बिना बंधुओं-सखाओं के जीवन जीने में है, वह और कहां? यूं समझ लीजिए कि यदि आपसे किसी ने बदला लेना होगा, तो वह आपको भरे-पूरे अपनों का साथ होने की बद दुआ देगा।<br />क्योंकि जब आपके अपनों की संख्या बढ़ जाएगी, तो वह आपको ऐसे ही निपटा देंगे, जैसे श्यामपट पर गीला कपड़ा लिखे हुए अक्षरों को मिटा देता है।<br />रोजमर्रा की जिंदगी मंे आप और हम ऐसे कितने लोगों को जानते-मिलते होंेगे, जो अपनांे की कु- कृपादृष्टि प्राप्त कर, चुक गए। इसलिए इन बातों को कपोलकल्पित समझना न्यूटन के गु:त्वाकर्षण सिद्धांत का मजाक उड़ाना है। यदि आपको विश्वास नहीं होता तो आज ही अपने, अपनों में खबर फैला दें कि आपकी लाWटरी लगी है। इस सुखद सूचना को पाकर, परलोक मंे बैठे आपके अपने भी पुर्नजन्म का मोह नहीं छोड़ पाएंगे तो धरा में रहने वालों की बात ही क्या। बरसों से जिन्होंने आपको अपनी अपेक्षा के भी काबिल नहीं समझा होगा वह इस समाचार के मिलते ही आपसे इस प्रकार मिलेंगे कि श्रीराम-भरत मिलाप भी फीका पड़ेगा। उस समय आपको आदर-सत्कार और प्रेमभाव की ऐसी सरिता में स्नान करने का अवसर प्राप्त होगा कि आप गंगा स्नान की महिमा भी भूल जाएंगे। वास्तव में अपनों को अपरम्पार प्रभु ने उस समय विशुद्ध :प से गढ़ा होगा, जब धरा की सुख-शांति से देवगण कुपित हो गए होंगे। चूंकि धरा पर मानव की उत्पत्ति के समय अपनों का अस्तित्व नहीं रहा होगा, उस समय धरती भी स्वर्ग के सादृश्य रही होगी। <br />ऐसे में स्वर्ग में रहने वालों को धोर आपत्ति हुई होगी कि मानव तो धरा पर स्वयं में मस्त रहते हुए स्वर्ग की कामना भी नहीं करता, जबकि मानव की उत्पत्ति के समय तैयार हुए एजेंडे में इस बात का साफ उल्लेख था कि वह मानव सुख-समृद्धि की कामना के लिए महामानवों की आराधना करेगा। लेकिन जब ऐसा नहीं हुआ होगा तो अवश्य ही देवगण भगवान की शरण में पहुंचे होंगे, तब अपनों की रचना परमपिता को न चाहते हुए भी करनी पड़ी होगी। लंकेश्वर से लेकर अब तक असंख्यों को अपनों के हाथों लंका ढहानी पड़ी है। समाचार पत्रों में रोज ही अपनों के अपनत्त्व आधरित हिंसा की खबरें आप निश्चय ही ग्लानि से भर पढ़ते होंगे। अब आप ही विचार करें कि आप अपनी किश्ती अपनों के सहारे डुबाएंगे या फिर अकेले मस्त पिज्जा का मजा उठाएंगे।<br /><br /><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiHXcWdJp1HxgpBt4zf8z-5atYj4gVMJnBmDXs554A7iEVu1u5Q69aBmZWxrfQr5rDasEtP741A9iyVthCSZCSmEfUPgYiV6XIK-tpVwoLyo3dDMOpEBi8cL3ol1sVUyTVTVu_3oDsl0j27/s1600-h/00.jpg"><img style="float:right; margin:0 0 10px 10px;cursor:pointer; cursor:hand;width: 320px; height: 214px;" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiHXcWdJp1HxgpBt4zf8z-5atYj4gVMJnBmDXs554A7iEVu1u5Q69aBmZWxrfQr5rDasEtP741A9iyVthCSZCSmEfUPgYiV6XIK-tpVwoLyo3dDMOpEBi8cL3ol1sVUyTVTVu_3oDsl0j27/s320/00.jpg" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5416890299887701314" /></a>dweepanterhttp://www.blogger.com/profile/01249447833219944837noreply@blogger.com24tag:blogger.com,1999:blog-1896713969904061006.post-3164647124124375212009-12-12T01:29:00.000-08:002009-12-12T03:11:14.612-08:00सूर्यास्त से सूर्योदयलेखक- नीरज<br />धारावाहिक कहानी<br /><br /><br /><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEijcrHkL7Y2_mlukecd-ykeKVB-4gZwSABFlZ2Mp7F03ZP1VJj2Tqxb61zAx0AVrN666Cb9RLBQq9wSNgHfoq_-8yRp7zSrH0WADS8aCH1lBSPWJJmRoXyjlRaKhbCVTU65W6Ee5neqK7i3/s1600-h/untitledd.jpg"><img style="float:right; margin:0 0 10px 10px;cursor:pointer; cursor:hand;width: 320px; height: 240px;" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEijcrHkL7Y2_mlukecd-ykeKVB-4gZwSABFlZ2Mp7F03ZP1VJj2Tqxb61zAx0AVrN666Cb9RLBQq9wSNgHfoq_-8yRp7zSrH0WADS8aCH1lBSPWJJmRoXyjlRaKhbCVTU65W6Ee5neqK7i3/s320/untitledd.jpg" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5414305548211705714" /></a><br /><br />‘‘बापू, आज पिफर पी कर आए हो।’’<br />हां पी कर आया हूं। तू सवाल-जवाब करने वाला होता कौन है? जो तेरा काम है उसी में ध्यान लगा। फालतू में दिमाग खराब मत कर चल भाग यहां से।’’ तारे ने गुस्से से भानू से कहा।<br />भानू तारे का 16 वर्षीय बालक था। पिछले दो वर्षों से वह नौंवी कक्षा से निकलने का असफलत प्रयास कर रहा था। इस बार यह उसका तीसरा चांस था। लेकिन इससे यह अनुमान लगाना कि वह पढ़ाई में शुरू से ही फिसड~डी रहा है, गलत होगा। आठवीं कक्षा तक प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण होकर वह कक्षा में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा चुका था। सोचने व समझने की उसमें गजब की शक्ति थी, परंतु उसके भाग्य में कुछ और ही लिखा था।<br />पढ़ाई से दिन-प्रतिदिन हटती उसकी रूचि से साथी विद्यार्थी और अध्यापक हैरान व परेशान थे। यहां तक कि उस गरीब तबके के विद्यार्थी भानू के लिए स्कूल के प्रींसिपल तक चिंतित थे। और हो भी क्यों न, इसी भानू ने अपनी विलक्षण प्रतिभा से कई बार स्कूल का नाम रोशन किया था।<br />‘‘अपनी अम्मा से थाली लगाने को कह दे’’ कुल्ला करते हुए तारे ने कहा।<br />यह सुन भानू घबराते हुए बोला, ‘‘अम्मा की तबियत ठीक नहीं है बापू। सुबह से ही बुखार में तपने के कारण अम्मा आज खाना नहीं बना सकी।’’<br />तारे तिलमिला उठा, ‘‘क्या हो गया उसे? मर तो नहीं गई। आदमी सुबह से शाम तक मजदूरी करें, इनके नखरे सहे और फिर खाना भी नसीब न हो। हद हो गई।’’<br />भानू जानता था कि बापू क्या मजदूरी करता है। सुबह से शाम तक एक ही फिक्र में रहता है कि शाम तक जैसे भी हो, जहां से भी हो बस एक बोतल लायक मजदूरी का इंतजाम हो जाए। घर की कोई चिंता नहीं है, कोई जिए या मरे। कैसे खर्च चलता है और कहां से राशन आता है इन सब बातों से उसे कोई लेना-देना नहीं है। हां, दो वक्त की रोटी उसे जरूर मिल जानी चाहिए।<br />यह तो उसकी अम्मा ही है जो दूसरों के घर मेहनत-मजदूरी कर दो वक्त की रोटी जुटाने का बीड़ा उठाए हुए है, किंतु आज अम्मा की तबियत खराब होने से न वो काम पर जा सकी और न ही खाने का कोई प्रबंध् हो सका। यहां तो रोज सुबह कुंआ खोदो व पानी पीओ जैसे हालात थे।<br />तारे के ये बाण पार्वती के कलेजे को भीतर तक भेद गए थे। वह तो सुबह ही काम पर जाने को उठ खड़ी हुई थी, लेकिन भानू ने उसकी बिगड़ती हालत देखकर उसे कहीं न जाने की अपनी कसम दे डाली।<br />मां आखिर करती भी क्या? एक तो बीमारी से लाचार और दूसरा बेटे का प्यार। दोनों बातों ने उसे रूकने पर विवश कर दिया और इस रूकने का परिणाम अब उसके सामने था।<br />तारे लेटे हुए लगातार बड़बड़ाता जा रहा था। इस बड़बड़ाहट में उसे कब नींद ने अपने आगोश में ले लिय उसे पता न चला। तारे का व्यवहार दिन-दिन रूखा होता जा रहा था, लेकिन वो दिन भी थे जब घर में चारों और खुशहाली थी। तारे घर की चिंता में लगा रहता था। उसे भानू की पढ़ाई की फिक्र थी। पार्वती की इच्छा व उसकी जरूरतों का ध्यान था। वह दिन में जितना कमाता उसे शाम को पार्वती के हाथ पर रख देता। उस थोड़ी-सी कमाई से भी घर में खुशहाली व सुख-शांति का माहौल था।<br />भानू को प्रथम श्रेणी पाते देखकर तारे खुशी से फूला न समाता और उसे और अधिक मेहनत के लिए प्रेरित करता। भानू भी पिता की इच्छानुसार खूब मन लगाकर पढ़ाई करता और अपनी प्रतिभा व क्षमता को हर स्तर पर साबित कर दिखाता।<br />किंतु पिछले कुछ सालों में सब कुछ बदल गया। जब से तारे को शराब रूपी जहर की लत ने घेरा है सारा घर बर्बाद हो गया। अब उसका एकमात्र प्यार व जरूरत दारू बन गई थी।<br />आरंभ में शराब को लेकर मियां-बीवी में जो बहस होती थी, उसका असर धीरे-धीरे भानू की पढ़ाई पर भी दिखाई देने लगा था। कक्षा में सदैव प्रथम आने वाले भानू के लिए अब पास होना एक स्वप्न बन गया था। रोज-रोज होने वाले झगड़े, गली-गलोच, मारपीट तथा घरेलू कलह ने उसके बाल मस्तिष्क को बुरी तरह झकझौर डाला था।<br />अद~भूत सोचने-विचारने की शक्ति रखने वाले भानू की बुद्धि को जो जंग लगा था उसके मूल में नि:संदेह उसका घरेलू कलह ही था। किंतु इस ओर किसी ने विशेष ध्यान नहीं दिया।<br />सुबह तारे की आंख देर से खुली। पार्वती व भानू को उसने कई आवाजें दीं किंतु कोई उत्तर न मिला।<br />‘‘न जाने कहां मर गए। आदमी मरे या जिए, सुखी हो या दुखी। इन्हें किसी की कोई पिफक्र नहीं है। अपनी ही मस्ती में रहते हैं। हरामखोर हैं दोनों।’ अपनी टीस निकालते हुए तारे बड़बड़ाया।<br />‘‘एक दिन भी काम पर नहीं गया तो सब पता चल जाएगा। आटे-दाल का भाव शायद मालूम नहीं है। जाओ आज नहीं जाता।’’ तारे ने मन में सोचा, किंतु अगले ही पल अपनी बोतल का ख्याल आते ही घर से निकल पड़ा।<br />रात को देर से घर आना तारे की आदत बन चुकी थी। मां-बेटा आधी रात के बाद तक उसकी बाट जोहते। किंतु तारे कभी-कभी पूरी रात न आता।<br />कई बार भानू के मन में आता कि यह कैसा जीवन है? हंसी-खुशी की कोई बात नहीं। केवल दु:खों को सहना, भूख-प्यास से लड़ना व देर रात तक इंतजार करना। क्या यही उसकी नियति है? शेष अगली पोस्ट में-dweepanterhttp://www.blogger.com/profile/01249447833219944837noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-1896713969904061006.post-87507789976604044962009-12-09T01:25:00.000-08:002009-12-09T04:27:10.045-08:00शेयर बाजार की पाठशाला<!--chitthajagat claim code-->
<br /><a href="http://www.chitthajagat.in/?claim=d6v8d7euom8z&ping=http://dweepanter.blogspot.com/" title="चिट्ठाजगत अधिकृत कड़ी"><img src="http://www.chitthajagat.in/chavi/chitthajagatping.png" border="0" alt="चिट्ठाजगत अधिकृत कड़ी" title="चिट्ठाजगत अधिकृत कड़ी";></a>
<br /><!--chitthajagat claim code-->
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<br /><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEghbrrzxcSW1nwQi49V17NU7bN9_knIHzLHLzG0UIiycB0_NDQtHFKubHkJBJxl_FNYeXXu8PQxWMCDaVhVm0DcJ7FyKBM4iGHY9CANiU2RTpChVNkiSWMeOoJ25DQ-aIRq0zYWAWheRpuz/s1600-h/bs.jpg"><img style="float:right; margin:0 0 10px 10px;cursor:pointer; cursor:hand;width: 320px; height: 256px;" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEghbrrzxcSW1nwQi49V17NU7bN9_knIHzLHLzG0UIiycB0_NDQtHFKubHkJBJxl_FNYeXXu8PQxWMCDaVhVm0DcJ7FyKBM4iGHY9CANiU2RTpChVNkiSWMeOoJ25DQ-aIRq0zYWAWheRpuz/s320/bs.jpg" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5413210859794663250" /></a>
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<br /><strong><strong><strong><strong><strong><strong>शेयर बाजार में निवेश करने के गोल्डन रूल</span></strong></strong></strong></strong></strong></strong>
<br /></span><span style="color:#ff0000;">चेतावनी-शेयर बाजार में निवेश से पूर्व निवेशक अपने वितीय सलाहकार से अवश्य सलाह करें। यह लेख आपको जानकारी देने का प्रयास मात्र है। इस लेख के संदर्भ में किसी भी प्रकार की जिम्मेदारी ब्लाग या इससे जुड़े लेखकों की नहीं होगी।</span></strong>
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<br /><span style="color:#3366ff;">प्रत्येक व्यक्ति अपने पैसे को तेजी से बढ़ता हुआ देखना चाहता है। इसके लिए वो बैंकिंग बचत से लेकर स्टाक मार्किट तक में निवेश के अवसर खोजता है। इसके लिए वो अपने स्तर पर कभी बचत को महत्व देता है, तो कभी व्यापार या स्टाक मार्किट में अपनी किस्मत को आजमाता है। लेकिन स्टाक मार्किट में निवेश करना भी एक कला है। जहां सही अवसर पर किया गया निवेश आपके पैसे को इतनी तेजी से बढ़ा सकता है, जिसकी आपने कभी कल्पना भी नहीं की होगी। और वही ऐसा भी हो सकता है कि मार्किट की नब्ज जांचें बिना किया गया निवेश, कागजों के ढेर में बदल जाए। स्टाक मार्किट के भी कुछ सुनहरे नियम हैं, जिनको जानना फायदेमंद साबित हो सकता है।</span></div>
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<br /><strong><span style="color:#ff0000;">आंख मुंदकर न करें यकीन:-</span></strong> स्टाक मार्किट का सबसे पहला और महत्वपूर्ण नियम है कि किसी की सुनी सुनाई बातों पर यकीन न करें। यदि कोई आपको कहता है कि यह बढ़िया शेयर है, तो इसे अक्षरा’ा: ठीक मानने की जगह आप सोचें की यह शेयर क्यों अच्छा है, शेयर से संबंधित कंपनी किस प्रकार तरक्की करेगी। यदि इन बातों के संतोषजनक उत्तर आपको नहीं मिलते तो आप खुद ही इसका अर्थ समझ सकते हैं।
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<br /><strong><span style="color:#ff0000;">समय की नब्ज पहचानें, तार्किक बनिए:-</span></strong> यदि आप वास्तव में ही उच्च व‘दि वाले स्टाक में निवेश के इच्छुक हंै तो आपको उन संभावनाओं पर भी ध्यान देना चाहिए जो शेयर बाजार के रूझान के अनुसार हों। उदाहरण के लिए पेट्रोल की कीमतें यदि बढ़ रही हैं तो उसके और भी बढ़ने की उम्मीद हो तो पेट्रो उत्पाद से संबंधित शेयर खरीदना फायदा का सौदा हो सकता है।
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<br /><strong><span style="color:#ff0000;">जोखिम सहने की क्षमता अर्थात आर्थिक स्थिति:-</span></strong> शेयर बाजार कोई पारसमणि नहीं जहां आपकी पूंजी लगते ही सोने में बदल जाएगी। निवेशक को अपनी माली हालत जानकर ही निवेश के बारे में सोचना चाहिए। प्राय: निवेशक अधिक रिटर्न पाने के चक्कर में अपनी आर्थिक स्थिति को ध्यान में रखें बिना अत्यधिक जोखिम पूर्ण निवेश कर लेता है। इस कारण बाजार से आपेक्षित परिणाम न प्राप्त होने के कारण निवेशक जहां अपनी पूंजी गंवाते हैं, वहीं बाजार को कोसते हैं। शेयर बाजार का यह महत्वपूर्ण नियम सदैव ध्यान रखें कि उतना ही निवेश करें जिसे जोखिम की स्थिति में आप आर्थिक एवं भावनात्मक स्तर पर सह सकें।
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<br /><strong><span style="color:#ff0000;">धैर्य:-</span></strong> स्टाक मार्किट चूंकि पैसा बनाने और गंवाने की जगह है इसलिए इस स्टाWक मार्किट में वही निवेशक अच्छा माना जाता है जो सम और विषम दोनों ही परिस्थितियों में संयम का दामन नहीं छोड़ता। शेयर बाजार पर मंदड़ियों के हावी होते ही शेयर बेच देना या फिर तेजड़ियों का रूझान देखकर एकदम भारी भरकम खरीद घाटे का सौदा हो सकती है। शेयरांें के प्रदर्’ान आंकलन एक ही झटके में करना गलत है।
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<br /><strong><span style="color:#ff0000;">तेजी में सोचो, मंदी में देखों:-</span></strong> शेयर बाजार तेजी और मंदी का ताना-बाना है, इसलिए निवेशक के लिए आपेक्षित है कि वो स्टाक मार्किट में निवेश करने से पहले उसका मूल्यांकन अवशय करें। इस प्रक्रिया में निवेशक को स्टाक का चयन करने के साथ-साथ संबंधित कंपनी तथा बाजार के हालात पर भी नजर रखनी चाहिए। जिस समय बाजार तेजी से कुलांचे भर रहा हो तो ख्याली पुलाव बनाकर स्टाक खरीदने की गड़बड़ी नुकसानदेह हो सकती है ऐसे समय में अपने पुराने स्टाक को निकालकर मुनाफा कमाना लाभदायक सिद्ध हो सकता है। अक्सर निवेशक से सेंसेक्स के चढ़ते समय भारी मुनाफा कमाने की नियत से स्टाक मार्किट में अपनी पूंजी लगा देते है, परंतु उम्मीदों के विपरीत खरीदा गया स्टाक रिवर्स गियर में चल पड़ता है तो निवेशक के लिए कापफी नुकसानदेह सिद्ध हो जाता हैं इसी प्रकार टूटते बाजार में स्टाक इकटठा करना भी नुकसानदेह साबित हो सकता है।</div>
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<br /><strong><span style="color:#ff0000;">काटते रहें मुनाफा:-</span></strong> शेयर बाजार में पैसा लगाना और उससे मुनाफा कमाना एक सहज प्रक्रिया है, परंतु बाजारों में तेजी और मंदी का चोली-दामन का साथ है। इसलिए स्टाक मार्किट से होने वाले मुनाफे को समय-समय पर शेयर मार्किट में लगाने की जगह पूंजी के रूप में अपने पास इकटठा करते रहना भी समझदारी है।
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<br /><strong><span style="color:#ff0000;">लंबी निवेश अवधि पर रखे ध्यान:-</span></strong>शेयर मार्किट में एकाएक मुनाफा बटोरने की जगह निवेशक को लंबी अवधि के निवेश की तरफ ध्यान देना चाहिए।
<br /><strong><span style="color:#ff0000;">कम करें जोखिम:-</span></strong> शेयर बाजार में होने वाले नुकसान को कम करने के लिए निवेशक को सतर्क रहने की जरूरत है। इसके लिए निवेशक को कोरी कल्पनाओं की अपेक्षा हकीकत का अनुसरण कर बाजार की स्थिति को देखते हुए अपने पोर्टफोलियों में स्टाक की अदला-बदली करनी चाहिए। इसके तहत मंदी की आशका के चलते निवेशक को उन स्टाक का चयन करना चाहिए जिसमें उठा-पटक कमतर होती हो तथा उन शेयरों को उचित मौके पर निकाल देना चाहिए जिसमें घाटे की संभावना हो।
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<br /><strong><span style="color:#ff0000;">समय-समय पर उचित दूरी बनाए रखें:-</span></strong> अक्सर अपने वाहनों के पीछे लिखा यह स्लोगन पड़ा होगा कि उचित दूरी बनाए रखें। बात स्टाक मार्किट पर भी लागू होती है। छोटे निवेशकों के लिए स्टाक मार्किट की निवेश प्रक्रिया के तहत स्टाक मार्किट से दूरी बनाना भी एक नियम है। स्टाक मार्किट में जिस समय अत्यध्कि उठा-पटक हो रही हो उस स्थिति में नुकसान से बचने के लिए कुछ समय के लिए स्टाक मार्किट से दूरी बना लेनी चाहिए। मार्किट का रूझान स्पष्ट न होने पर किया गया निवेश नुकसान में भी बदल सकता है।</div>
<br />dweepanterhttp://www.blogger.com/profile/01249447833219944837noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1896713969904061006.post-88477131823786534202009-12-07T03:02:00.000-08:002009-12-07T03:03:29.975-08:00<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgcbl3jJaGxSOyxq4S30vkDPcRV2tY9VuBOEz5_3_hKg-Xg5zBFoczJe5kOwjhoTwPaSaA0xi2_vmlHTrD671dbJGRkiMXFZ7DKaOaC4tsLKNOWqP0HLoq3STn1qrAx_LMUDvIYxm__ArX_/s1600-h/2.jpg"><img id="BLOGGER_PHOTO_ID_5412448083330155538" style="DISPLAY: block; MARGIN: 0px auto 10px; WIDTH: 281px; CURSOR: hand; HEIGHT: 306px; TEXT-ALIGN: center" alt="" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgcbl3jJaGxSOyxq4S30vkDPcRV2tY9VuBOEz5_3_hKg-Xg5zBFoczJe5kOwjhoTwPaSaA0xi2_vmlHTrD671dbJGRkiMXFZ7DKaOaC4tsLKNOWqP0HLoq3STn1qrAx_LMUDvIYxm__ArX_/s320/2.jpg" border="0" /></a><br /><div></div><span style="font-size:180%;color:#ff0000;"><span class=""> दर्शकों</span> को लुभाया आरो ने</span><br />फिल्म पा का का जिस तरह दर्शको को इंतजार था, वो उनकी की कसौटी पर खरी उतरी है। प्रोजेरिया नामक बिमारी से पीड़ित बच्चे को आधार बना बुनी गई फिल्म की कहानी अमिताभ यानि आWरो तथा उनकी मां अर्थात विद्यावलान के इर्द-गिर्द ही धूमती है। सदी के महानायक अमिताभ बच्चन ने एक बार फिर सिद्ध कर दिखायाा कि अभिनय के क्षेत्र में उनका कोई सानी नहीं है। प्रोजेरिया से पीड़ित गबच्चे का किरदार जिस खूबी से उन्होंने निभाया है उसे देखकर कहना यह मुश्किल होगा कि उसे निभाने वाले 65 वर्षीय अमिताभ हैं। वो तारें जमीं के बाल कलाकार दर्शील सफारी की तरह ही स्वाभाविक अभिनय करते नजर आए हैं।आWरो की मां के रोल में विद्यावालन यह दर्शाने सफल रही हैं कि वह केवल पर्दे की रंगी-पुती हिरोइन ही नहींं, अभिनय की बारीकियां की समझ भी उनमें है। अभिनय के क्षेत्र में अभिषेक बच्चन भी जमें हैं। उनके रोल में बहुत सारे शेडस हैं। एक तरफ तो वो एक ऐसे प्रेमी हैं जो अपनी प्रेमिका बीच मझधार में छोड़ देते हैं तो वहीं वो एक नेता और इन सबसे ज्यादा एक पा हैंै। फिल्म के अंतिम दृश्यों वो प्रभावित करते हैं। परेश रावल तथा अरुंधति राय ने अपनी-अपनी भूमिकाओं के साथ न्याय किया है। इस संवेदनशील मुददे पर फिल्म बनाना और उसे सटीक ढ़ग से पेश करना आसान नहीं माना जा सकता। फिल्म निर्देशक आर. बाल्कि ने जिस तरह से पूरी फिल्म में कथानक को शिथिल नहीं पड़ने दिया उसे लेकर उनकी तारीफ किया लाजमी है। संवेदना की चाश्नी में डूबी फिल्म मे जहां तहां निर्देशक ने पात्रों के माध्यम से के कहीं भी फिल्म को ंशिथिल पड़ने नहीं दिया। स्वानंद किरकिरे के गीत तथा इलयराजा का संगीत ताजगी लिए हुए हैं। गुमसुम गीत श्रोताओं में पहले ही लोकप्रिय हो चुका है।dweepanterhttp://www.blogger.com/profile/01249447833219944837noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1896713969904061006.post-30335990374228999002009-12-07T02:52:00.000-08:002009-12-07T02:55:25.846-08:00<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhlFQaXpd3vYsP1aTixbO4pLhcrURKxvxxoUIIyp0rFLOPyLekKm2gqAq6kndDkVyIb9WiA6sO1JeCTm4hUq07KP8w9ZJPQ0SWX8JHtzAfXxvLG5oj-w71DNFDA7FF6rdXQuMYB3kg_vEUi/s1600-h/1.jpg"><img id="BLOGGER_PHOTO_ID_5412446024507941042" style="DISPLAY: block; MARGIN: 0px auto 10px; WIDTH: 320px; CURSOR: hand; HEIGHT: 169px; TEXT-ALIGN: center" alt="" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhlFQaXpd3vYsP1aTixbO4pLhcrURKxvxxoUIIyp0rFLOPyLekKm2gqAq6kndDkVyIb9WiA6sO1JeCTm4hUq07KP8w9ZJPQ0SWX8JHtzAfXxvLG5oj-w71DNFDA7FF6rdXQuMYB3kg_vEUi/s320/1.jpg" border="0" /></a><br /><div><span style="font-size:180%;"><span style="color:#ff6600;"><strong><span class=""> लव</span> ट्रायंगल रेडियो</strong><br /></span></span>बतौर अभिनेता हिमेश रेशमिया कि यह तीसरी फिल्म हैं। अपनी पिछली फिल्म के फलाWप हो जाने के बाद हिमेश को अपनी इस फिल्म से काफी उम्मीदें हैं, जो कि होनी भी चाहिए। हालांकि संगीत और गायन के क्षेत्र में हिमेश ने शोहरत की इबारत अपने नाम लिख ली है परंतु अभिनय के क्षेत्र में सफलता पाने के लिए उन्हें थोड़ी और मेहनत करनी पड़ेगी। बहरहाल रेडियो फिल्म को लेकर दर्शकों में वैसा उत्साह देखने को नहीं मिला जो कि उनकी पिछली दो फिल्मों को लेकर था लेकिन हिमेश के भाव-विहीन अभिनय छोड़ दिया जाए तो यदि थोड़ी और मेहनत की जाती तो फिल्म और भी अच्छी बन सकती थी। गीत-संगीत की दृष्टि से रेडियो अच्छी है और इसके कई गाने लोगों की जुबान पर चढ़ने के साथ-साथ मोबाइल रिंगटोन बन चुके हैं। फिल्म में हिमेश के बाद दो अहम पात्र पूजा यानि सोनल सहगल तथा शनाया यानि शाहनाज ट्रेजरीवाला ने अपने-अपने अभिनय से प्रभावित किया है। सदाबहार परेश रावल ने अपने किरदार को पूरी ईमानदारी के साथ निभाया है। इस फिल्म की कहानी की बात करें तो यह रेडियो जाWकी यानि आर जे के जीवन पर बेस्ड है। फिल्म में आरजे विवान बने हिमेश जिंदगी की परेशानियों से जूझ रहे हैं। शादी के कुछ समय बाद उसका तलाक हो गया है। उसकी जिंदगी में शनाया की एंट्री होती है जो उसे समझने के साथ-साथ उसके डांवाडोल हो रहे कैरियर को संभालने में मदद करती है। उधर विवान की पहली पत्नी पूजा को भी अपनी गल्तियों का एहसास होता है और वो विवान के पास वापस लौटना चाहती है। तिकोण हो रहे प्रेम प्रसंग को दिलचस्प बना कर दिखाया गया है। कथानक और निदेशन की दृष्टि से फिल्म को सराहा जा सकता है जो आज के युवाओं को अच्छी लगेगी। निर्देशक इशान त्रिवेदी ने अपनी पिछली फिल्मों की तुलना में ज्यादा अच्छा वर्क किया है।</div>dweepanterhttp://www.blogger.com/profile/01249447833219944837noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1896713969904061006.post-4766036209804411852009-06-18T06:14:00.001-07:002009-06-18T06:14:48.936-07:00द्वीपांतरमित्रों आपका इस ब्लाग पर स्वागत है। आपको जानकर खु’ाी होगी जल्द ही द्वीपांतर हिंदी मासिक पारिवारिक पात्रिका प्रका’िात होने जा रही है। आप सभी सुधी लेखकों से अनुरोध है कि आप अपनी नवीनतम रचनाएं हमें नि’ाुल्क प्रका’ानार्थ भेज कर हमारा सहयोग करें। प्रस्तावित योजना के तहत द्वीपांतर हिंदी मासिक पात्रिका का अंक जुलाई के प्रथम सप्ताह में प्रका’िात हो जाएगा।<br />द्वीपांतर पात्रिका को प्रका’िात करने के लिए हम कुछ मित्रों की टीम पूरी तन्मयता के साथ जुड़ी है। अत्यंत ही सीमित संसाधनों में यह पात्रिका निकालने का हमारा यह प्रयास कितना सफल रहता है यह तो समय के साथ ही पता चलेगा। इस कार्य में आपका सहयोग सदैव सराहनीय रहेगा।साभारद्वीपांतरdweepanterhttp://www.blogger.com/profile/01249447833219944837noreply@blogger.com12